वर्तनी एवं वाक्य शुद्धीकरण की सम्पूर्ण जानकरी यहाँ पढ़े
वर्तनी एवं वाक्य शुद्धीकरण
किसी शब्द को लिखने में प्रयुक्त वर्णों के क्रम को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं। अँग्रेजी में वर्तनी को 'Spelling' तथा उर्दू में 'हिज्जे' कहते हैं। किसी भाषा की समस्त ध्वनियों को सही ढंग से उच्चारित करने हेतु वर्तनी की एकरुपता स्थापित की जाती है। जिस भाषा की वर्तनी में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा की वर्तनी उतनी ही समर्थ होगी। अतः वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियों के उच्चारण से है।
शुद्ध वर्तनी लिखने के प्रमुख नियम निम्न प्रकार हैं-
हिन्दी में विभक्ति चिह्न सर्वनामों के अलावा शेष सभी शब्दों से अलग लिखे जाते हैं,
जैसे-
- मोहन ने पुत्र को कहा।
- श्याम को रुपये दे दो।
परन्तु सर्वनाम के साथ विभक्ति चिह्न हो तो उसे सर्वनाम में मिलाकर लिखा जाना चाहिए, जैसे- हमने, उसने, मुझसे, आपको, उसको, तुमसे, हमको, किससे, किसको,किसने, किसलिए आदि।
सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिह्न होने पर पहला विभक्ति चिह्न सर्वनाम में मिलाकर लिखा जाएगा एवं दूसरा अलग लिखा जाएगा, जैसे- आपके लिए, उसके लिए, इनमें से, आपमें से, हममें से आदि।
सर्वनाम और उसकी विभक्ति के बीच 'ही' अथवा 'तक' आदि अव्यय हों तो विभक्ति सर्वनाम से अलग लिखी जायेगी, जैसे- आप ही के लिए, आप तक को, मुझ तक को, उस ही के लिए।
संयुक्त क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाओं को अलग-अलग लिखा जाना चाहिए, जैसे- जाया करता है, पढ़ा करता है, जा सकते हो, खा सकते हो, आदि।
पूर्वकालिक प्रत्यय 'कर' को क्रिया से मिलाकर लिखा जाता है, जैसे- सोकर, उठकर, गाकर, धोकर, मिलाकर, अपनाकर, खाकर, पीकर, आदि।
द्वन्द्व समास में पदों के बीच योजन चिह्न (-) हाइफन लगाया जाना चाहिए, जैसे- माता-पिता, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, बाप-बेटा, रात-दिन आदि।
'तक', 'साथ' आदि अव्ययों को पृथक लिखा जाना चाहिए, जैसे- मेरे साथ, हमारे साथ, यहाँ तक, अब तक आदि।
'जैसा' तथा 'सा' आदि सारूप्य वाचकों के पहले योजक चिह्न (-) का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे- चाकू-सा, तीखा-सा, आप-सा, प्यारा-सा, कन्हैया-सा आदि।
जब वर्णमाला के किसी वर्ग के पंचम अक्षर के बाद उसी वर्ग के प्रथम चारों वर्णों में से कोई वर्ण हो तो पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार ( ं) का प्रयोग होना चाहिए। जैसे-
कंकर, गंगा, चंचल, ठंड, नंदन, संपन्न, अंत, संपादक आदि। परंतु जब नासिक्य व्यंजन (वर्ग का पंचम वर्ण) उसी वर्ग के प्रथम चार वर्णों के अलावा अन्य किसी वर्ण के पहले
आता है तो उसके साथ उस पंचम वर्ण का आधा रूप ही लिखा जाना चाहिए। जैसे- पन्ना, सम्राट, पुण्य, अन्य, सन्मार्ग, रम्य, जन्म, अन्वय, अन्वेषण, गन्ना, निम्न, सम्मान आदि
परन्तु घन्टा, ठन्डा, हिण्दी आदि लिखना अशुद्ध है।
अ, ऊ एवं आ मात्रा वाले वर्षों के साथ अनुनासिक चिह्न () को इसी चन्द्रबिन्दु () के रूप में लिखा जाना चाहिए, जैसे- आँख, हँस, जाँच, काँच, अँगना, साँस, ढाँचा, ताँत, दायाँ, बायाँ, ऊँट, हूँ, जूँ आदि। परन्तु अन्य मात्राओं के साथ अनुनासिक चिह्न को अनुस्वार (0) के रूप में लिखा जाता है, जैसे- मैंने, नहीं, ढेंचा, खींचना, दायें, बायें,सिँचाई, ईंट आदि।
संस्कृत मूल के तत्सम शब्दों की वर्तनी में संस्कृत वाला रूप ही रखा जाना चाहिए, परन्तु कुछ शब्दों के नीचे हलन्त (Q) लगाने का प्रचलन हिन्दी में समाप्त हो चुका है। अतः उनके नीचे हलन्त न लगाया जाये, जैसे- महान, जगत, विद्वान आदि। परन्तु संधि या छन्द को समझाने हेतु नीचे हलन्त लगाया जाएगा।
अँग्रेजी से हिन्दी में आये जिन शब्दों में आधे 'ओ' (आ एवं ओ के बीच की ध्वनि 'ऑ') की ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके ऊपर अर्द्ध चन्द्रबिन्दु लगानी चाहिए, जैसे- बॉल, कॉलेज, डॉक्टर, कॉफी, हॉल, हॉस्पिटल आदि।
संस्कृत भाषा के ऐसे शब्दों, जिनके आगे विसर्ग (:) लगता है, यदि हिन्दी में वे तत्सम रूप में प्रयुक्त किये जाएँ तो उनमें विसर्ग लगाना चाहिए, जैसे- दुःख, स्वान्तः, फलतः, प्रातः, अतः, मूलतः, प्रायः आदि। परन्तु दुखद, अतएव आदि में विसर्ग का लोप हो गया है।
विसर्ग के पश्चात् श, ष, या स आये तो या तो विसर्ग को यथावत लिखा जाता है या उसके स्थान पर अगला वर्ण अपना रूप ग्रहण कर लेता है।
जैसे-
- दुः + शासन = दुःशासन या दुश्शासन
- निः + सन्देह = निःसन्देह या निस्सन्देह ।
- वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ एवं उनमें सुधार :
उच्चारण दोष अथवा शब्द रचना और संधि के नियमों की जानकारी की अपर्याप्तता के कारण सामान्यतः वर्तनी अशुद्धि हो जाती है।
वर्तनी की अशुद्धियों के प्रमुख कारण निम्न हैं-
उच्चारण दोषः कई क्षेत्रों व भाषाओं में, स-श, व-ब, न-ण आदि वर्णों में अर्थभेद नहीं किया जाता तथा इनके स्थान पर एक ही वर्ण स, ब या न बोला जाता है जबकि हिन्दी में इन वर्षों की अलग-अलग अर्थ-भेदक ध्वनियाँ हैं। अतः उच्चारण दोष के कारण इनके लेखन में अशुद्धि हो जाती है।
जैसे-
- अशुद्ध - शुद्ध
- कोसिस - कोशिश
- सीदा - सीधा
- सबी - सभी
- सोर - शोर
- अराम - आराम
- पाणी - पानी
- बबाल - बवाल
- पाठसाला - पाठशाला
- शब - शव
- निपुन - निपुण
- प्रान- प्राण
- बचन वचन
- व्यवहार व्यवहार
- रामायन - रामायण
- गुन - गुण
जहाँ 'श' एवं 'स' एक साथ प्रयुक्त होते हैं वहाँ 'श' पहले आयेगा एवं 'स' उसके बाद। जैसे- शासन, प्रशंसा, नृशंस, शासक । इसी प्रकार 'श' एवं 'ष' एक साथ आने पर पहले 'श' आयेगा फिर 'ष', जैसे शोषण, शीर्षक, विशेष, शेष, वेशभूषा, विशेषण आदि।
'स्' के स्थान पर पूरा 'स' लिखने पर या 'स' के पहले किसी अक्षर का मेल करने पर अशुद्धि हो जाती है, जैसे- इस्त्री (शुद्ध होगा- स्त्री), अस्नान (शुद्ध होगा- स्नान),
परसपर अशुद्ध है जबकि शुद्ध है परस्पर।
अक्षर रचना की जानकारी का अभाव देवनागरी लिपि में संयुक्त व्यंजनों में दो व्यंजन मिलाकर लिखे जाते हैं, परन्तु इनके लिखने में त्रुटि हो जाती है, जैसे-
- अशुद्ध शुद्ध
- आर्शीवाद - आशीर्वाद
- निमार्ण - निर्माण
पुर्नस्थापना - पुनर्स्थापना बहुधा 'र' के प्रयोग में अशुद्धि होती है। जब 'र' (रेफ) किसी अक्षर के ऊपर लगा हो तो वह उस अक्षर से पहले पढ़ा जाएगा। यदि हम सही उच्चारण करेंगे तो अशुद्धि का ज्ञान हो जाता है। आशीर्वाद में 'र', 'वा' से पहले बोला जायेगा- आशीर वाद। इसी प्रकार निर्माण में 'र्' का उच्चारण 'मा' से पहले होता है, अतः 'र्' मा के ऊपर आयेगा।
जिन शब्दों में व्यंजन के साथ स्वर, 'र्' एवं आनुनासिक का मेल हो उनमें उस अक्षर को लिखने की विधि है-अक्षर स्वर र अनुस्वार।
जैसे-
- त्एर अनुस्वार-शर्तें
- म् ओ र अनुस्वार कर्मों।
इसी प्रकार औरों, धर्मों, पराक्रमों आदि को लिखा जाता है।
कोई, भाई, मिठाई, कई, ताई आदि शब्दों को कोयी, भायी, मिठायी, तायी आदि लिखना अशुद्ध है। इसी प्रकार अनुयायी, स्थायी, वाजपेयी शब्दों को अनयाई, स्थाई, वाजपेई आदि रूप में लिखना भी अशुद्ध होता है।
सम् उपसर्ग के बाद य, र, ल, व, श, स, ह आदि ध्वनि हो तो 'म्' को हमेशा अनुस्वार (0) के रूप में लिखते हैं, जैसे संयम, संवाद, संलग्न, संसर्ग, संहार, संरचना, संरक्षण आदि। इन्हें सम्शय, सम्हार, सम्वाद, सम्रचना, सम्लग्न, सम्रक्षण आदि रूप में लिखना सदैव अशुद्ध होता है।
आनुनासिक शब्दों में यदि 'अ' या 'आ' या 'ऊ' की मात्रा वाले वर्षों में आनुनासिक ध्वनि() आती है तो उसे हमेशा (3) के रूप में ही लिखा जाना चाहिए। जैसे- दाँत, पूँछ, ऊँट, हैं, पाँच, हाँ, चाँद, हँसी, ढाँचा आदि परन्तु जब वर्ण के साथ अन्य मात्रा हो तो () के स्थान पर अनुस्वार (०) का प्रयोग किया जाता है, जैसे- फेंक, नहीं, खींचना, गोंद आदि।
विराम चिह्नों का प्रयोग न होने पर भी अशुद्धि हो जाती है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे- रोको, मत जाने दो। रोको मत, जाने दो।
इन दोनों वाक्यों में अल्प विराम के स्थान परिवर्तन से अर्थ बिल्कुल उल्टा हो गया है।
'ष' वर्ण केवल षट् (छह) से बने कुछ शब्दों, यथा- षट्कोण, षड़यंत्र आदि के प्रारंभ में ही आता है। अन्य शब्दों के शुरू में 'श' लिखा जाता है। जैसे शोषण, शासन, शेषनाग आदि।
संयुक्ताक्षरों में 'ट्' वर्ग से पूर्व में हमेशा 'ष' का प्रयोग किया जाता है, चाहे मूल शब्द 'श' से बना हो, जैसे- सृष्टि, षष्ट, नष्ट, कष्ट, अष्ट, ओष्ठ, कृष्ण, विष्णु आदि।
'क्श' का प्रयोग सामान्यतः नक्शा, रिक्शा, नक्श आदि शब्दों में ही किया जाता है, शेष सभी शब्दों में 'क्ष' का प्रयोग किया जाता है। जैसे- रक्षा, कक्षा, क्षमता, सक्षम, शिक्षा, दक्ष आदि।
'ज्ञ' ध्वनि के उच्चारण हेतु 'ग्य' लिखित रूप में निम्न शब्दों में ही प्रयुक्त होता है ग्यारह, योग्य, अयोग्य, भाग्य, रोग से बने शब्द जैसे-आरोग्य आदि में। इनके अलावा अन्य शब्दों में 'ज्ञ' का प्रयोग करना सही होता है, जैसे- ज्ञान, अज्ञात, यज्ञ, विशेषज्ञ, विज्ञान, वैज्ञानिक आदि।
हिन्दी भाषा सीखने के चार मुख्य सोपान हैं सुनना, बोलना, पढ़ना व लिखना। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है जिसकी प्रधान विशेषता है कि जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। अतः शब्द को लिखने से पहले उसकी स्वर-ध्वनि को समझकर लिखना समीचीन होगा। यदि 'ए' की ध्वनि आ रही है तो उसकी मात्रा का प्रयोग करें। यदि 'उ' की ध्वनि आ रही है तो 'उ' की मात्रा का प्रयोग करें।
हिन्दी में अशुद्धियों के विविध प्रकार शब्द-संरचना तथा वाक्य प्रयोग में वर्तनीगत अशुद्धियों के कारण भाषा दोषपूर्ण हो जाती है। प्रमुख अशुद्धियाँ निम्नलिखित हैं-
1. भाषा (अक्षर या मात्रा) सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
- अशुद्ध शुद्ध
- बृटिश - ब्रिटिश
- त्रगुण - त्रिगुण
- रिषी ऋषि
- ब्रह्मा ब्रह्मा
- बन्ध - बंध
- वैत्रिक - पैतृक
- जाग्रती - जागृति
- स्त्रीयाँ - स्त्रियाँ
- स्रष्टि - सुष्टि
- अती - अति
- तैय्यार - तैयार
- आवश्यकीय आवश्यक
- उपरोक्त - उपर्युक्त
- श्रोत - स्रोत
- जाइये - जाइए
- लाइये - लाइए
- लिये - लिए
- अनुगृह - अनुग्रह
- अकाश - आकाश
- असीस - आशिष
- देहिक - दैहिक
- कवियत्रि - कवयित्री
- दृष्टि - दृष्टि
- घनिष्ट - घनिष्ठ
- व्यवहारिक - व्यावहारिक
- रात्री - रात्रि
- प्राप्ती - प्राप्ति
- सामर्थ - सामर्थ्य
- एकत्रित - एकत्र
- ईर्षा - ईर्ष्या
- पुन्य - पुण्य
- कृतघ्नी - कृतघ्न
- बनिता - वनिता
- निरिक्षण - निरीक्षण
- पती- पति
- आक्रष्ट - आकृष्ट
- सामिल - शामिल
- मष्तिस्क - मस्तिष्क
- निसार निःसार
- सन्मान सम्मान
- हिन्दु - हिन्दू
- गुरू- गुरु
- दान्त दाँत
- चहिए - चाहिए
- प्रथक पृथक
- परिक्षा - परीक्षा
- षोडषी - षोडशी
- परीवार - परिवार
- परीचय - परिचय
- सौन्दर्यता - सौन्दर्य
- अज्ञानता - अज्ञान
- गरीमा - गरिमा
- समाधी - समाधि
- बूड़ा- बूढ़ा
- ऐक्यता - एक्य, एकता
- पूज्यनीय - पूजनीय
- पत्नि - पत्नी
- अतीशय - अतिशय
- संसारिक - सांसारिक
- शताब्दि - शताब्दी
- निरोग - नीरोग
- दुकान - दुकान
- दम्पति दम्पती
- अन्तर्चेतना अन्तश्चेतना
2. लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
हिन्दी में लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ प्रायः दिखाई देती हैं। इस दृष्टि से निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(1) विशेषण शब्दों का लिंग सदैव विशेष्य के समान होता है।
(2) दिनों, महीनों, ग्रहों, पहाड़ों, आदि के नाम पुल्लिंग में प्रयुक्त होते हैं, किन्तु तिथियों, भाषाओं और नदियों के नाम स्त्रीलिंग में प्रयोग किये जाते हैं।
(3) प्राणिवाचक शब्दों का लिंग अर्थ के अनुसार तथा अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग व्यवहार के अनुसार होता है।
(4) अनेक तत्सम शब्द हिन्दी में स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं।
उदाहरण-
- दही बड़ी अच्छी है। (बड़ा अच्छा)
- आपने बड़ी अनुग्रह की। (बड़ा, किया)
- मेरा कमीज उतार लाओ। (मेरी)
- लड़के और लड़कियाँ चिल्ला रहे हैं। (रही)
- कटोरे में दही जम गई। (गया)
- मेरा ससुराल जयपुर में है। (मेरी)
- महादेवी विदुषी कौवे हैं। (कवयित्री)
- आत्मा अमर होता है। (होती)
- उसने एक हाथी जाती हुई देखी। (जाता हुआ देखा)
- मन की मैल काटती है। (का, काटता)
- हाथी का सूंड केले के समान होता है। (की, होती)
- सीताजी वन को गए। (गर्थी)
- विद्वान स्त्री (विदुषी स्त्री)
- गुणवान महिला (गुणवती महिला)
- माघ की महीना (माघ का महीना)
- मूर्तिमान् करुणा (मूर्तिमयी करुणा)
- आग का लपट (आग की लपट)
- मेरा शपथ (मेरी शपथ)
- गंगा का धारा (गंगा की धारा)
- चन्द्रमा की मण्डल (चन्द्रमा का मण्डल)।
3. समास सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
दो या दो से अधिक पदों का समास करने पर प्रत्ययों का उचित प्रयोग न करने से जो शब्द बनता है, उसमें कभी-कभी अशुद्धि रह जाती है। जैसे-
- अशुद्ध शुद्ध
- दिवारात्रि - दिवारात्र
- निरपराधी निरपराध
- ऋषीजन ऋषिजन
- प्रणीमात्र प्राणिमात्र
- स्वामीभक्त स्वामिभक्त
- पिताभक्ति - पितृभक्ति
- महाराजा महाराज
- भ्राताजन - भ्रातृजन
- दुरावस्था - दुवस्था
- स्वामीहित - स्वामिहित
- नवरात्रा- नवरात्र
- 4. संधि सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
- अशुद्ध शुद्ध
- उपरोक्त उपर्युक्त
- सदोपदेश - सदुपदेश
- वयवृद्ध - वयोवृद्ध
- सदेव - सदैव
- अत्यधिक - अत्याधिक
- सन्मुख - सम्मुख
- उधृत - उद्धत
- मनहर - मनोहर
- अधतल अधस्तल
- आर्शीवाद आशीर्वाद
- दुरावस्था - दुरवस्था
5. विशेष्य-विशेषण सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
- शुद्ध - अशुद्ध
- पूज्यनीय व्यक्ति
- पूजनीय व्यक्ति
- लाचारवश - लाचारीवश
- महान् कृपा - महती कृपा
- गोपन कथा- गोपनीय कथा
- विद्वान् नारी विदुषी नारी
- मान्यनीय मन्त्रीजी - माननीय मन्त्रीजी
- सन्तोष-चित्त सन्तुष्ट-चित्त
- सुखमय शान्ति सुखमयी शान्ति
- सुन्दर वनिताएँ - सुन्दरी वनिताएँ
- महान् कार्य - महत्कार्य
6. प्रत्यय-उपसर्ग सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
- अशुद्ध शुद्ध
- सौन्दर्यता - सौन्दर्य
- लाघवता - लाघव
- गौरवता - गौरव
- चातुर्यता - चातुर्य
- ऐक्यता - ऐक्य
- सामर्थ्यता - सामर्थ्य
- सौजन्यता- सौजन्य
- औदार्यता औदार्य
- मनुष्यत्वता - मनुष्यत्व
- अभिष्ट- अभीष्ट
- बेफिजूल फिजूल
- मिठासता मिठास
- अज्ञानता अज्ञान
- भूगौलिक भौगोलिक
- इतिहासिक - ऐतिहासिक
- निरस - नीरस
7. वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
(1) हिन्दी में बहुत-से शब्दों का प्रयोग सदैव बहुवचन में होता है, ऐ ऐसे शब्द हैं-हस्ताक्षर, प्राण, दर्शन, आँसु, होश आदि।
(2) वाक्य में 'यों', 'अथवा का प्रयोग करने पर क्रिया एकवचन होती है। लेकिन 'और', 'एवं', 'तथा' का प्रयोग करने पर क्रिया बहुवचन होती है।
(3) आदरसूचक शब्दों का प्रयोग सदैव बहुवचन में होता है।
उदाहरणार्थ- 1. दो चादर खरीद लाया। (चादरें)
2. एक चटाइयाँ बिछा दो। (चटाई)
3. मेरा प्राण संकट में है। (मेरे, हैं)
4.आज मैंने महात्मा का दर्शन किया। (के, किये)
5. आज मेरा मामा आये। (मेरे)
6. फूल की माला गूँथो। (फूलों)
7. यह हस्ताक्षर किसका है? (ये, किसके, हैं)
8. विनोद, रमेश और रहीम पढ़ रहा है। (रहे हैं)
अन्य उदाहरण-
- अशुद्ध शुद्ध
- स्त्रीयाँ - स्त्रियाँ
- मातायों - माताओं
- नारिओं - नारियों
- अनेकों - अनेक
- बहुतों - बहुत
- मुनिओं - मुनियों
- सबों- सब
- विद्यार्थीयों - विद्यार्थियों
- बन्धुएँ - बन्धुओं
- दादों - दादाओं
- सभीओं- सभी
- नदीओं- नदियों
8. कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
- अ. राम घर नहीं है।
- शु. राम घर पर नहीं है।
- अ. अपने घर साफ रखो।
- शु. अपने घर को साफ रखो।
- अ.उसको काम को करने दो।
- शु. - उसे काम करने दो।
- अ. आठ बजने को पन्द्रह मिनट हैं।
- शु. आठ बजने में पन्द्रह मिनट हैं।
- अ. मुझे अपने काम को करना है।
- शु. - मुझे अपना काम करना है।
- अ. यहाँ बहुत से लोग रहते हैं।
- शु. - यहाँ बहुत लोग रहते हैं।
- 9. शब्द-क्रम सम्बन्धी अशुद्धियाँ:
- अ . वह पुस्तक है पढ़ता।
- शु. वह पुस्तक पढ़ता है।
- अ.आजाद हुआ था यह देश सन् 1947 में।
- शु. यह देश सन् 1947 में आजाद हुआ था।
- अ.'पृथ्वीराज रासो' रचना चन्द्रवरदाई की है।
- शु. - चन्द्रवरदाई की रचना 'पृथ्वीराज रासो' है।
वाक्य-रचना सम्बन्धी अशुद्धियाँ एवं सुधारः
(1) वाक्य-रचना में कभी विशेषण का विशेष्य के अनुसार उचित लिंग एवं वचन में प्रयोग न करने से या गलत कारक चिह्न का प्रयोग करने से अशुद्धि रह जाती है।
(2)उचित विराम चिह्न का प्रयोग न करने से अथवा शब्दों को उचित क्रम में न रखने पर भी अशुद्धियाँ रह जाती हैं।
(3) अनर्थक शब्दों का अथवा एक अर्थ के लिए दो शब्दों का और व्यर्थ के अव्यय शब्दों का प्रयोग करने से भी अशुद्धि रह जाती है।
उदाहरणार्थ-
- अ. अशुद्ध, शु. शुद्ध)
- अ. सीता राम की स्त्री थी।
- शु. सीता राम की पत्नी थी।
- अ. -मंत्रीजी को एक फूलों की माला पहनाई।
- शु.मंत्रीजी को फूलों की एक माला पहनाई।
- अ. - महादेवी वर्मा श्रेष्ठ कवि थीं।
- शु. - महादेवी वर्मा श्रेष्ठ कवयित्री थीं।
- अ. शत्रु मैदान से दौड़ खड़ा हुआ था।
- शु. - शत्र मैदान से भाग खड़ा हुआ।
- अ. मेरे भाई को मैंने रुपये दिए।
- शु. अपने भाई को मैंने रुपये दिये।
- अ. यह किताब बड़ी छोटी है।
- शु.यह किताब बहुत छोटी है।
- अ. उपरोक्त बात पर मनन कीजिए।
- शु.उपर्युक्त बात पर मनन करिये।
- अ. मेरा सिर चक्कर काटता है।
- शु.- मेरा सिर चकरा रहा है।
- अ.शायद आज सुरेश जरूर आयेगा।
- शु. शायद आज सुरेश आयेगा।
- अ.कृपया हमारे घर पधारने की कृपा करें।
- शु. हमारे घर पधारने की कृपा करें।
- अ. उसके पास अमूल्य अँगूठी है।
- शु. उसके पास बहुमूल्य अँगूठी है।
- अ. गाँव में कुत्ते रात भर चिल्लाते हैं।
- शु. गाँव में कुत्ते रात भर भौंकते हैं।
- अ. पेड़ों पर कोयल बोल रही है।
- शु . - पेड़ पर कोयल कूक रही है।
- अ.वह प्रातः काल के समय घूमने जाता है।
- शु. वह प्रातःकाल घूमने जाता है।
- अ. - जज ने हत्यारे को मृत्यु दण्ड की सजा दी।
- शु. जज ने हत्यारे को मृत्यु दण्ड दिया।
- अ. वह विख्यात डाकू था।
- शु. - वह कुख्यात डाकू था।
- अ. - वह निरपराधी था।
- शु. - वह निरपराध था।
- अ. - आप चाहो तो काम बन जायेगा।
- शु. आप चाहें तो काम बन जायेगा।
- अ. - माँ-बच्चा दोनों बीमार पड़ गर्यो।
- शु - माँ-बच्चा दोनों बीमार पड़ गए।
- अ.बेटी पराये घर का धन होता है।
- शु. बेटी पराये घर का धन होती है।
- अ. - भक्तियुग का काल स्वर्णयुग माना जाता है।
- शु. भक्ति-काल स्वर्ण युग माना गया है।
- अ. - बचपन से मैं हिन्दी बोली हूँ।
- शु. बचपन से मैं हिन्दी बोलतीं हैं।
- अ. वह मुझे देखा तो घबरा गया।
- शु. उसने मुझे देखा तो घबरा गया।
- अ. अस्तबल में घोडा चिंघाड़ रहा है।
- शु. - अस्तबल में घोड़ा हिनहिना रहा है।
- पिंजरे में शेर बोल रहा है।
- शु. - पिंजरे में शेर दहाड़ रहा है।
- अ. जंगल में हाथी दहाड़ रहा है।
- शु. जंगल में हाथी चिंघाड़ रहा है।
- अ. कृपया यह पुस्तक मेरे को दीजिए।
- शु. - यह पुस्तक मुझे दीजिए।
- अ. बाजार में एक दिन का अवकाश उपेक्षित है।
- शु. बाजार में एक दिन का अवकाश अपेक्षित है।
- अ. छात्र ने कक्षा में पुस्तक को पढ़ा।
- शु. - छात्र ने कक्षा में पुस्तक पढ़ी।
- अ. आपसे सदा अनुग्रहित रहा है।
- शु.- आपसे सदा अनुगृहीत हूँ।
- अघर में केवल मात्र एक चारपाई है।
- शु. घर में एक चारपाई है।
- अ.माली ने एक फूलों की माला बनाई।
- शु. माली ने फूलों की एक माला बनाई।
- अ. वह चित्र सुन्दरतापूर्ण है।
- शु. वह चित्र सुन्दर है।
- अ कुत्ता एक स्वामी भक्त जानवर है।
- शु. - कुत्ता स्वामिभक्त पशु है।
- अ- शायद आज आँधी अवश्य आयेगी।
- शु. शायद आज आँधी आये।
- अ दिनेश सांयकाल के समय घूमने जाता है।
- शु. दिनेश सायंकाल घूमने जाता है।
- अ. यह विषय बड़ा छोटा है।
- शु. - यह विषय बहुत छोटा है।
- अ. अनेकों विद्यार्थी खेल रहे हैं।
- शु. अनेक विद्यार्थी खेल रहे हैं।
- अ वह चलता चलता थक गया।
- शु. वह चलते-चलते थक गया।
- अ. मैंने हस्ताक्षर कर दिया है।
- शु. - मैंने हस्ताक्षर कर दिये हैं।
- अ - लता मधुर गायक है।
- शु. - लता मधुर गायिका है।
- अ. महात्माओं के सदोपदेश सुनने योग्य होते हैं।
- शु. - महात्माओं के सदुपदेश सुनने योग्य होते हैं।
- अ. उसने न्याधीश को निवेदन किया।
- शु. - उसने न्यायाधीश से निवेदन किया।
- अ. हम ऐसा ही हैं।
- शु - मैं ऐसा ही है।
- अ. पेड़ों पर पक्षी बैठा है।
- शु . - पेड़ पर पक्षी बैठा है।
- अ. या पेड़ों पर पक्षी बैठे हैं।
- अ. हम हमारी कक्षा में गए।
- शु. हम अपनी कक्षा में गए।
- आप खाये कि नहीं?।
- - आपने खाया कि नहीं?।
- - वह गया।
- शु. वह चला गया।
- अ. हम चाय अभी-अभी पिया है।
- शुः - हमने चाय अभी-अभी पी है।
- इसका अन्तःकरण अच्छा है।
- शु . इसका अन्तःकरण शुद्ध है।
- अ. - शेर को देखते ही उसका होश उड़ गया।
- शु . शेर को देखते ही उसके होश उड़ गये।
- अ. - वह साहित्यिक पुरुष है।
- शु. वह साहित्यकार है।
- अ. रामायण सभी हिन्दू मानते हैं।
- शु. रामायण सभी हिन्दुओं को मान्य है।
- अ. आज ठण्डी बर्फ मँगवानी चाहिए।
- शु. आज बर्फ मँगवानी चाहिए।
- अ. मैच को देखने चलो।
- शु. - मैच देखने चलो।
- अ. मेरा पिताजी आया है।
- शु. - मेरे पिताजी आये हैं।
सामान्यतः अशुद्धि किए जाने वाले प्रमुख शब्द:
- अशुद्ध राह
- अतिथी - अतिथि
- अतिश्योक्ति - अतिशयोक्ति
- अमावश्या अमावस्या
- अनुगृह - अनुग्रह
- अन्तर्ध्यान अन्तर्धान
- अन्त्याक्षरी अन्ताक्षरी
- अनूजा - अनुजा
- अन्धेरा - अँधेरा
- अनेकों- अनेक
- अनाधिकार अनधिकार
- अधिशाषी अधिशासी
- अन्तरगत - अन्तर्गत
- अलोकित अलौकिक
- अगम अगम्य
- अहार - आहार
- अजीविका आजीविका
- अहिल्या अहल्या
- अपरान्ह अपराह्न
- अत्याधिक - अत्यधिक
- अभिशापित -अभिशप्त
- अंतेष्टि - अंत्येष्टि
- अकस्मात अकस्मात्
- अर्थात - अर्थात्
- अनूपम- अनुपम
- अंतर्रात्मा - अंतरात्मा
- अन्विती - अन्विति
- अध्यावसाय अध्यवसाय
- आभ्यंतर अभ्यंतर
- अन्वीष्ट अन्विष्ट
- आखर अक्षर
- आवाहन आह्वान
- आयू - आयु
- आदेस - आदेश
- अभ्यारण्य अभयारण्य
- अनुग्रहीत- अनुगृहीत
- अहोरात्रि - अहोरात्र
- अक्षुण्य- अक्षुण्ण
- अनुसूया - अनुसूर्या
- अक्षोहिणी - अक्षौहिणी
- अंकुर - अंकुर
- आहूति - आहुति
- आधीन अधीन
- आशिर्वाद - आशीर्वाद
- आद्र - आर्द्र
- आरोग - आरोग्य
- आक्रषक आकर्षक
- इष्ठ - इष्ट
- इर्ष्या - ईर्ष्या
- इस्कूल स्कूल
- इतिहासिक - ऐतिहासिक
- इक्षा - ईक्षा
- इप्सित - ईप्सित
- इकट्ठा - इकट्ठा
- इन्दू- इन्दु
- ईमारत - इमारत
- एच्छिक ऐच्छिक
- उज्वल उज्ज्वल
- उत्तरदाई उत्तरदायी
- उत्तरोत्तर उत्तरोत्तर
- उध्यान उद्यान
- उपरोक्त - उपर्युक्त
- उपवाश - उपवास
- उदहारण उदाहरण
- उलंघन उल्लंघन
- उपलक्ष उपलक्ष्य
- उन्नतिशाली उन्नतिशील
- उच्छवास उच्छवास
- उज्जयनी उज्जयिनी
- उदीप्त उद्दीप्त
- ऊधम - उद्यम
- उच्छिष्ट - उच्छिष्ट
- ऊषा - उषा
- ऊखली - ओखली
- उष्मा - ऊष्मा
- उर्मि ऊर्मि
- उरु-उरू
- उहापोह - ऊहापोह
- ऊंचाई ऊँचाई
- ऊख - ईख
- रिधि - ऋद्धि
- एक्य ऐक्य
- एतरेय - ऐतरेय
- एकत्रित - एकत्र
- एश्वर्य – ऐश्वर्य
- ओषध औषध
- ओचित्य औचित्य
- औधोगिक औद्योगिक
- कनिष्ट - कनिष्ठ
- कलिन्दी कालिन्दी
- करूणा करुणा
- कविन्द्र - कवीन्द्र
- कवियत्री कवयित्री
- कलीदास कालिदास
- कार्रवाई - कार्यवाही
- केन्द्रिय केन्द्रीय
- कैलास - कैलाश
- किरन - किरण
- किर्या - क्रिया
- किंचित - किंचित्
- कीर्ती - कीर्ति
- कुआ - कुंआ
- कुटम्ब - कुटुम्ब
- कुतुहल - कौतूहल
- कुशाण - कुषाण
- कुरूति - कुरीति
- कुसूर - कसूर
- कैकयी कैकेयी
- कोतुक तुक कौतुक
- कोमुदी - कौमुदी
- कोशल्या कौशल्या
- कोशल- कौशल
- क्रति - कृति
- क्रतार्थ - कृतार्थ
- क्रतज्ञ - कृतज्ञ
- कृत्धन - कृतघ्र
- कृत्रिम - कृत्रिम
- खेतीहर - खेतिहर
- गरिष्ट गरिष्ठ
- गणमान्य - गण्यमान्य
- गत्यार्थ - गत्यर्थ
- गुरू-गुरु गूँगा गूँगा
- गोप्यनीय - गोपनीय
- गूंज - गूँज
- गौरवता - गौरव
- गृहणी - गृहिणी
- ग्रसित - ग्रस्त
- गृहता - ग्रहीता
- गीतांजली गीतांजलि
- गत्यावरोध गत्यवरोध
- गृहस्थि - गृहस्थी
- गर्भिनी - गर्भिणी
- घन्टा घण्टा, घंटा
- घबड़ाना- घबराना
- चन्चल चंचल, चञ्चल
- चातुर्यता - चातुर्य, चतुरा
- चाहरदीवारी चहारदीवारी, चारदीवारी
- चेत्र - चैत्र
- तदानुकूल - तदनुकूल
- तत्त्वाधान तत्त्वावधान
- तनखा तनख्वाह
- तरिका - तरीका
- तखत तख्त
- तड़िज्योति - तड़िज्ज्योति
- तिलांजली - तिलांजलि
- तीर्थकर - तीर्थंकर
- त्रसित - त्रस्त
- तत्व - तत्त्व
- दंपति - दंपती
- दारिद्रयता दारिद्रय, दरिद्रता
- दुख - दुःख
- दृष्टा - दृष्टा
- देहिक - दैहिक
- दोगुना - दुगुना
- धनाड्य धनाढ्य
- धुरंदर - धुरंधर
- धैर्यता - धैर्य
- भ्रष्ट - धृष्ट
- झौंका - झोंका
- तदन्तर- तदनन्तर
- जरुरत जरूरत
- दयालू - दयालु
- धुम्र - धूम्र
- दुरुह - दुरूह
- धोका - धोखा
- नैसर्गिक -नैसृगिक
- नाइका - नायिका
- नर्क - नरक
- संग्रह - संग्रह
- गोतम - गौतम
- झंपड़ी - झोंपड़ी
- तस्तरी - तश्तरी
- छूद्र - क्षुद्र
- छमा, समा- क्षमा
- तोल - तौल
- जजर्र जागृत - जाग्रत जर्जर
- श्रृगाल - शृगाल
- श्रृंगार - शृंगार
- गिध - गिद्ध
- चाहिये - चाहिए
- तदोपरान्त- तदुपरान्त
- क्षुदा - क्षुधा चिन्ह - चिह्न
- तिथी तिथि
- तैय्यार तैयार
- धेनू - धेनु नटिनी - नटनी
- बन्धू-बन्धु
- द्वन्द - द्वन्द्व
- निरोग - नीरोग
- निश्कलंक - निष्कलंक
- निरव - नीरव
- नैपथ्य - नेपथ्य
- परिस्थिती - परिस्थिति
- परलोकिक - पारलौकिक
- नीतीज्ञ - नीतिज्ञ
- नृसंस - नृशंस
- न्यायधीश न्यायाधीश
- परसुराम - परशुराम
- बढ़ाई - बड़ाई
- प्रहलाद - प्रह्माद
- बुद्धवार - बुधवार
- पुन्य - पुण्य बृज - ब्रज
- पिपिलिका पिपीलिका
- बैदेही - वैदेही
- पुर्नविवाह - पुनर्विवाह
- भीमसैन - भीमसेन
- मच्छिका मक्षिका
- लखनउ - लखनऊ
- मुहूर्त - मुहूर्त
- निरसता - नीरसता
- बुढ़ा - बूढ़ा
- परमेस्वर - परमेश्वर
- बहुब्रीह - बहुब्रीहि
- नेत्रत्व - नेतृत्व
- भीत्ति - भित्ति
- प्रथक पृथक
- मंत्रि- मन्त्री
- पर्गल्भ- प्रगल्य
- ब्रहमान्ड - ब्रहमाण्ड
- महात्म्य - माहात्म्य
- ब्राम्हण - ब्राह्मण
- मैथलीशरण मैथिलीशरण
- बरात बारात
- व्यावहार व्यवहार
- भेरव भैरव
- भगीरथी भागीरथी
- भेषज - भैषज
- मंत्रीमंडल मन्त्रिमण्डल
- मध्यस्त मध्यस्थ
- यसोदा - यशोदा
- विरहणी - विरहिणी
- यायावर यायावर
- मृत्यूलोक - मृत्युलोक
- राज्यभिषेकर - राज्याभिषेक
- युधिष्ठर- युधिष्ठिर
- रितीकाल - रीतिकाल
- यौवनावस्था युवावस्था
- रचियता - रचयिता
- लघुत्तर - लघुत्तर
- रोहीताश्च - रोहिताश्व
- वनोषध - वनौषध
- व्याभिचारी - व्यभिचारी
- सुश्रुषा - सुश्रूषा/शुश्रूषा
- सौजन्यता- सौजन्य
- संक्षिप्तिकरण संक्षिप्तीकरण
- संसदसदस्य संसत्सदस्य
- सतगुण - सद्गुण
- सम्मती - सम्मति
- संघठन संगठन
- संतती - संतति
- समिक्षा - समीक्षा
- सौंदर्यता - सौंदर्य/सुन्दरता
- सौहार्द्र - सौहार्द सहश्र - सहस्र
- संग्रह - संग्रह
- संसारिक - सांसारिक
- सत्मार्ग सन्मार्ग
- सदृश्य - सदृश सदोपदेश - से
- सदुपदेश समरथ - समर्थ
- स्वस्थ्य स्वास्थ्य/स्वस्थ
- स्वास्तिक स्वस्तिक
- समबंध संबंध
- सन्यासी - संन्यासी
- सरोजनी - सरोजिनी
- संपति - संपत्ति
- समुंदर - समुद्र साधू - साधु
- समाधी- समाधि
- सुहागन- सुहागिन
- सप्ताहिक - साप्ताहिक
- सानंदपूर्वक आनंदपूर्वक, सानंद समाजिक सामाजिक
- स्त्राव - स्त्राव स्त्रोत- स्रोत
- सारथी - सारथि
- सुई - सूई
- सुसुप्ति - सुषुप्ति
- नयी - नई नहीं नहीं
- निरुत्साहित - निरुत्साह
- निस्वार्थ निःस्वार्थ
- निराभिमान निरभिमान
- निरानुनासिक - निरनुनासिक
- निरूत्तर - निरुत्तर
- नींबू- नीबू
- न्यौछावर - न्योछाव
- नबाब नवाब
- निहारिका - नीहारिका
- निशंग - निषंग
- नूपुर - नूपुर
- परिणित - परिणति, परिणीत
- परिप्रेक्ष - परिप्रेक्ष्य
- पश्चात्ताप पश्चाताप परिषद - परिषद्
- पुनरावलोकन - पुनरवलोकन
- पुनरोक्ति - पुनरुक्ति
- पुनरोत्थान - पुनरुत्थान
- पितावत् - पितृवत्
- पक्षि- पक्षी
- पूर्वान्ह - पूर्वाह्न
- पुज्य - पूज्य
- पूज्यनीय - पूजनीय
- प्रगती - प्रगति
- प्रज्ज्वलित - प्रज्वलित
- प्रकृती - प्रकृति
- प्रतीलिपि - प्रतिलिपि
- प्रतिछाया - प्रतिच्छाया
- प्रमाणिक - प्रामाणिक
- प्रसंगिक प्रासंगिक
- प्रदर्शिनी - प्रदर्शनी
- प्रियदर्शनी प्रियदर्शिनी
- प्रत्योपकार - प्रत्युपकार
- प्रविष्ठ - प्रविष्ट
- पृष्ट - पृष्ठ
- प्रगट- प्रकट
- प्राणीविज्ञान प्राणिविज्ञान
- पातंजली पतंजलि
- पौरुषत्व - पौरुष
- पौर्वात्य - पौरस्त्य
- बजार - बाजार
- वाल्मीकी - वाल्मीकि
- बेइमान - बेईमान
- ब्रहस्पति - बृहस्पति
- भरतरी - भर्तृहरि
- भर्तसना भत्र्सना
- भागवान भाग्यवान्
- भानू - भानु
- भारवी - भारवि
- भाषाई - भाषायी
- भिज्ञ अभिज्ञ
- भैय्या - भैया
- मनुषत्व - मनुष्यत्व
- मरीचका - मरीचिका
- महत्व - महत्त्व
- मँहगाई - मंहगाई
- महत्वाकांक्षा महत्त्वाकांक्षा
- मालुम - मालूम
- मान्यनीय माननीय
- मुकंद - मुकुंद
- मुनी- मुनि
- मुहल्ला - मोहल्ला
- माताहीन - मातृहीन
- मूलतयः - मूलतः
- मोहर - मुहर
- योगीराज - योगिराज
- यशगान - यशोगान
- रविन्द्र - रवीन्द्र
- रागनी - रागिनी
- रुठना रूठना
- रोहीत - रोहित
- लोकिक - लौकिक
- वस्तुयें - वस्तुएँ
- वांछनीय वांछनीय
- वित्तेषणा - वितैषणा
- वृतांत - वृतांत
- वापिस वापस
- वासुकी - वासुकि
- विधार्थी - विद्यार्थी
- विदेशिक - वैदेशिक
- विधी - विधि
- वांगमय - वाङ्मय
- वरीष्ठ - वरिष्ठ
- विस्वास - विश्वास
- विषेश - विशेष
- विछिन्न - विच्छिन्न
- विशिष्ठ - विशिष्ट
- वशिष्ट वशिष्ठ, वसिष्ठ
- वैश्या - वेश्या
- वेषभूषा - वेशभूषा
- व्यंग व्यंग्य
- - व्यवहृत शारीरिक
- व्यवहरित
- शारीरीक - विसराम - विश्राम
- शांती - शांति
- शारांस - सारांश
- शाषकीय शासकीय
- श्रोत - स्रोत
- श्राप - शाप
- शाबास - शाबाश
- शर्बत - शरबत
- शंशय - संशय
- सिरीष - शिरीष
- शक्तिशील शक्तिशाली
- शार्दूल - शार्दूल
- शौचनीय - शोचनीय
- शुरूआत - शुरुआत
- शुरु - शुरू
- श्राद - श्राद्ध
- श्रृंग शृंग
- श्रृंखला - शृंखला
- श्रृद्धा - श्रद्धा
- शुद्धी-शुद्धि
- श्रीमति - श्रीमती
- श्मशु - श्मश्रु
- षटानन - षडानन
- सरीता - सरिता
- सन्सार संसार
- संश्लिष्ठ संश्लिष्ट
- हरितिमा - हरीतिमा
- हृदय - हृदय
- हिरन - हरिण
- हितेषी - हितैषी
- हिंदू - हिंदू
- ऋषिकेश -हृषिकेश
- हेतू-हेतु।
What's Your Reaction?